6 माह बाद दिल्ली से आई निजामुद्दीन एक्सप्रेस
प्रशासन की लापरवाही : प्रवेश और निर्गम द्वार पर एक भी डॉक्टर नहीं, 140 यात्री प्लेटफार्म 1 पर उतरे
उज्जैन।देश में कोरोना संक्रमण फैलने के साथ ही केन्द्र सरकार द्वारा पूरे देश में टोटल लॉकडाउन घोषित किया था। 22 मार्च को लागू हुए लॉकडाऊन के करीब 6 माह बाद शनिवार को दिल्ली से चलकर इंदौर जाने वाली निजामुद्दीन एक्सप्रेस उज्जैन स्टेशन के प्लेटफार्म नंबर 1 पर पहुंची। कोरोना नियमों के अनुसार ट्रेन में यात्रा के लिये चढऩे वाले और उतरने वाले यात्रियों की थर्मल स्क्रीनिंग होना अनिवार्य है लेकिन स्टेशन के प्रवेश और निर्गम द्वार पर एक भी डॉक्टर मौजूद नहीं था।
अनलॉक लागू होने के बाद रेलवे प्रशासन द्वारा कोरोना नियमों के अंतर्गत दो माह पहले कुछ ट्रेनों का संचालन शुरू किया था जिसमें उज्जैन को अहमदाबाद से चलकर दरभंगा और वाराणसी जाने वाले साबरमती एक्सप्रेस की सुविधा मिली थी। जिसके बाद 12 सितंबर से रेलवे प्रशासन ने देश में कुछ और ट्रेनों का संचालन शुरू किया जिसके बाद उज्जैन स्टेशन को शिप्रा एक्सप्रेस, हजरत निजामुद्दीन एक्सप्रेस व दो अन्य ट्रेनों की सुविधा मिली।
रविवार सुबह दिल्ली से चलकर इंदौर के लिये जाने वाली हजरत निजामुद्दीन एक्सप्रेस सुबह 9.30 बजे उज्जैन रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म नं. 1 पर रुकी। ट्रेन से कुल 140 यात्री उतरे। कोरोना नियमों के अनुसार ट्रेन से उतरकर शहर में प्रवेश करने वाले यात्रियों की थर्मल स्क्रीनिंग की जाना है। इस दौरान यदि कोई यात्री संदिग्ध लगता है तो इसकी सूचना कोरोना टीम को भी देना होती है। इसी प्रकार ट्रेन में चढऩे से पहले भी यात्रियों की थर्मल स्क्रीनिंग होना है, लेकिन सुबह जब हजरत निजामुद्दीन एक्सप्रेस से यात्री उतरे तो निर्गम द्वार पर एक भी डॉक्टर मौजूद नहीं था। यही स्थिति प्रवेश द्वार की भी थी।
लॉकडाउन के बाद पहली कमाई 50 रुपये
देश में लॉकडाउन लागू होने के बाद यात्री ट्रेनों का संचालन भी पूरी तरह बंद कर दिया गया था। इस कारण उज्जैन रेलवे स्टेशन पर काम करने वाले कुलियों के सामने रोजी रोटी का संकट खड़ा हो गया। उन्होंने लॉकडाउन में बेरोजगारी के दिन बड़ी मुश्किल से गुजारे और अब उज्जैन स्टेशन से करीब 5 ट्रेनों का संचालन शुरू हुआ तो कुलियों को भी रोजगार मिलने की आस जागी है। रेलवे स्टेशन के सबसे पुराने कुली शफी बाबा ने हजरत निजामुद्दीन एक्सप्रेस से उतरे यात्रियों का सामान प्लेटफार्म से ऑटो स्टैंड तक पहुंचाकर 50 रुपये लिये। उनके काम से खुश होकर यात्री ने 10 रुपये अलग से दिये। शफी बाबा ने बताया कि 6 माह बाद आज पहली बार 50 रुपये कमाये हैं, कुलियों की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है। ट्रेनों का संचालन पूरी क्षमता से हो तो ही काम चल पायेगा।
रेलवे और जिला अस्पताल के डॉक्टरों की रहती है ड्यूटी
रेलवे प्रशासन द्वारा जब साबरमती एक्सप्रेस का संचालन शुरू किया गया उस दौरान कोरोना नियमों के अनुसार प्लेटफार्म पर प्रवेश के पहले रेलवे प्रशासन के डॉक्टर यात्रियों की थर्मल स्क्रीनिंग कर जांच करते थे, जबकि निर्गम द्वार पर जिला अस्पताल के डॉक्टरों की ड्यूटी लगाई जाती थी। रेलवे अधिकारियों का कहना है कि नियम तो अब भी वही हैं, लेकिन निजामुद्दीन एक्सप्रेस में उज्जैन से कोई यात्री नहीं बैठा इस कारण डॉक्टर भी नहीं आये, लेकिन उतरने वाले यात्रियों की जांच के लिये जिला अस्पताल के डॉक्टरों की जानकारी नहीं है।
प्रशासन की लापरवाही : प्रवेश और निर्गम द्वार पर एक भी डॉक्टर नहीं, 140 यात्री प्लेटफार्म 1 पर उतरे
उज्जैन।देश में कोरोना संक्रमण फैलने के साथ ही केन्द्र सरकार द्वारा पूरे देश में टोटल लॉकडाउन घोषित किया था। 22 मार्च को लागू हुए लॉकडाऊन के करीब 6 माह बाद शनिवार को दिल्ली से चलकर इंदौर जाने वाली निजामुद्दीन एक्सप्रेस उज्जैन स्टेशन के प्लेटफार्म नंबर 1 पर पहुंची। कोरोना नियमों के अनुसार ट्रेन में यात्रा के लिये चढऩे वाले और उतरने वाले यात्रियों की थर्मल स्क्रीनिंग होना अनिवार्य है लेकिन स्टेशन के प्रवेश और निर्गम द्वार पर एक भी डॉक्टर मौजूद नहीं था।
अनलॉक लागू होने के बाद रेलवे प्रशासन द्वारा कोरोना नियमों के अंतर्गत दो माह पहले कुछ ट्रेनों का संचालन शुरू किया था जिसमें उज्जैन को अहमदाबाद से चलकर दरभंगा और वाराणसी जाने वाले साबरमती एक्सप्रेस की सुविधा मिली थी। जिसके बाद 12 सितंबर से रेलवे प्रशासन ने देश में कुछ और ट्रेनों का संचालन शुरू किया जिसके बाद उज्जैन स्टेशन को शिप्रा एक्सप्रेस, हजरत निजामुद्दीन एक्सप्रेस व दो अन्य ट्रेनों की सुविधा मिली।
रविवार सुबह दिल्ली से चलकर इंदौर के लिये जाने वाली हजरत निजामुद्दीन एक्सप्रेस सुबह 9.30 बजे उज्जैन रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म नं. 1 पर रुकी। ट्रेन से कुल 140 यात्री उतरे। कोरोना नियमों के अनुसार ट्रेन से उतरकर शहर में प्रवेश करने वाले यात्रियों की थर्मल स्क्रीनिंग की जाना है। इस दौरान यदि कोई यात्री संदिग्ध लगता है तो इसकी सूचना कोरोना टीम को भी देना होती है। इसी प्रकार ट्रेन में चढऩे से पहले भी यात्रियों की थर्मल स्क्रीनिंग होना है, लेकिन सुबह जब हजरत निजामुद्दीन एक्सप्रेस से यात्री उतरे तो निर्गम द्वार पर एक भी डॉक्टर मौजूद नहीं था। यही स्थिति प्रवेश द्वार की भी थी।
लॉकडाउन के बाद पहली कमाई 50 रुपये
देश में लॉकडाउन लागू होने के बाद यात्री ट्रेनों का संचालन भी पूरी तरह बंद कर दिया गया था। इस कारण उज्जैन रेलवे स्टेशन पर काम करने वाले कुलियों के सामने रोजी रोटी का संकट खड़ा हो गया। उन्होंने लॉकडाउन में बेरोजगारी के दिन बड़ी मुश्किल से गुजारे और अब उज्जैन स्टेशन से करीब 5 ट्रेनों का संचालन शुरू हुआ तो कुलियों को भी रोजगार मिलने की आस जागी है। रेलवे स्टेशन के सबसे पुराने कुली शफी बाबा ने हजरत निजामुद्दीन एक्सप्रेस से उतरे यात्रियों का सामान प्लेटफार्म से ऑटो स्टैंड तक पहुंचाकर 50 रुपये लिये। उनके काम से खुश होकर यात्री ने 10 रुपये अलग से दिये। शफी बाबा ने बताया कि 6 माह बाद आज पहली बार 50 रुपये कमाये हैं, कुलियों की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है। ट्रेनों का संचालन पूरी क्षमता से हो तो ही काम चल पायेगा।
रेलवे और जिला अस्पताल के डॉक्टरों की रहती है ड्यूटी
रेलवे प्रशासन द्वारा जब साबरमती एक्सप्रेस का संचालन शुरू किया गया उस दौरान कोरोना नियमों के अनुसार प्लेटफार्म पर प्रवेश के पहले रेलवे प्रशासन के डॉक्टर यात्रियों की थर्मल स्क्रीनिंग कर जांच करते थे, जबकि निर्गम द्वार पर जिला अस्पताल के डॉक्टरों की ड्यूटी लगाई जाती थी। रेलवे अधिकारियों का कहना है कि नियम तो अब भी वही हैं, लेकिन निजामुद्दीन एक्सप्रेस में उज्जैन से कोई यात्री नहीं बैठा इस कारण डॉक्टर भी नहीं आये, लेकिन उतरने वाले यात्रियों की जांच के लिये जिला अस्पताल के डॉक्टरों की जानकारी नहीं है।
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